बादशाह अकबर को बड़े बड़े विद्वान् और प्रतिभाशाली पुरुषो को अपने
दरबार में रखने का जूनून सवार रहता था.
जब भी कोई महान या प्रतिभाशाली ब्यक्ति उसके दरबार में आता था
उसे वह अपने मंत्रियो में शामिल कर लेता था.इनमे से नव लोग दरबार
में नवरत्नों के नाम से जाने
जाते थे.
अकबर का दरबार विद्वान और बुद्धिमान लोगो से भराथा.वे
असाधारण,प्रतिभाशाली और अपने अपने छेत्र में निपुण थे.उन्ही
दिनों महेश नाम काएक लड़का अकबर के राज्य में एक छोटे से
गावं में रहता था.
वह अब दुनिया की यात्रा करना कहता था.उसने निश्चय किआ की वह
बादशाह के
दरबार में जायगा और वहाँ नौकरी पाने की कोशिस करेगा.
उसने बादशाह के महल,दरबार व् बड़े नगरों के बारे में बहुत कुछ
सुन रखा
था.बहुत कहानियाँ सुन सुन कर बहुत रोमांचित हो रहा था.
बड़े बड़े बाजारों व् नगरों से होकर वह शहर पहुचं गया.महल के
दरवाजे पर पहुँचने के बाद अन्दर न जा सका.द्वारपाल ने उसे पकड़
लिया.”उसने पूछा आप कहाँ जाना
चाहते हैं और क्या सोच रहें हैं.”
महेशदास ने उत्तर दिया “हम बादशाह को देखने जा रहाँ हूँ.”द्वारपाल
हंसने लगा उसने कहा “मुझे लगता है बादशाह ने विशेष रूप से अपने
भोजनकछ में रात के खाने में आमंत्रित किया है.वह कुछ न बोला
द्वारपाल ने फिर कहा “तुम्हारे लिए बादशाह को देखना संभव नहीं ही
वव्यस्त हैं.मुझे बादशाह का आदेश हैकि किसी को भी अन्दर न भेजा जाये.”
महेशदास ने द्वारपाल से अन्दर जाने का बहुत आग्रह किया.द्वारपाल
ने कहा
“मैंने कहा न तुम्हे अन्दर नहीं भेज सकता.
महेशदास ने कहा “क्यों ? द्वारपाल ने कहा तुम बहुत गरीब हो.हर
ब्यक्ति बादशाह को देखने के लिए मुझे कुछ देता जैसे एक गाय,एक
बकरी या कढ़ाई की हुई चप्पल”तुम मुझे क्या दे सकते हो?”
महेशदास ने कहा “मेरे पास अभी तो कुछ नही है किन्तु मै वादा करता
हूँ जो कुछ भी मुझे बादशाह से उपहार के रूप में मिलेगा उसमे से मै
तुमहे आधा दे दूंगा”
द्वारपाल जानता था की बादशाह एक उदार ब्यक्ति हैं वह अकसर उन्हे
देखने आने वालो को महंगे उपहार देते रहेते हैं.इसलिए द्वारपाल तुरंत
राजी हो गया.
महेशदास ने महल में प्रवेश किया.वह महल की शान शौकत देख कर
हैरान रह गया.वहां पर बहुत महेंगे कढ़ाई किये हुए परदे व् कालीन
थे.बहुत खूबसूरती से महल सजाया गया था.
पूरा महल लाल बलुआ पत्थरों से बनायागया था.बादशाह दरबार में
बीच में बैठा था.महेशदास ने बादशाह को झुक कर अभिवादन किया.
अकबर ने कहा,तुमने मुझे जो सम्मान दिया है उससे मैं बहुत खुश हूँ
बताओ बदले में तुम्हे मुझसे क्या चाहिये?” महेशदास दास ने
कहा,”जहाँपनाह! यदि ऐसा है तो मुझे सौ कोड़े मेरी नंगी पीठ पर मारा
जाये.यही मेरा
इनाम है”
सम्राट बहुत हैरान हो गये.उसने कहा,”यह तो बहुत अजीब इनाम है.
तुम क्यों मुझसे ऐसा इनाम मांग रहे हो?”
महेशदास ने कहा,”महाराज! जब मै आप से मिलने आ रहा था,तो
द्वारपाल ने मुझसे कहा कि आप से जो मुझे प्राप्त होगा,उसका आधा
मुझे
देना होगा.”
बादशाह अकबर हंस पड़े और बोले,"यह एक गंभीर विषय है.इसका
मतलब कि द्वारपाल अपना काम करने के लिए रिश्वत लेता है.इसकी
सजा उसे मिलनी चाहिए."
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द्वारपाल को पकड़ कर लाया गया और उसे रिश्वत लेने के लिए अपराध
में सौ कोड़े मारने की सजा दी गयी.फिर अकबर ने कहा.”तुम बहुत
चतुर
ब्यक्ति हो .क्यों न तुम मेरे दरबार में मंत्री के रूप में शोभा पाओ.”
महेशदास यह सुन कर बहुत खुश हुआ.उस दिन से वह बीरबल के
नाम से जाना जाता है.
वह बादशाह की हर समस्या का हल मिनटो में कर देता हा.उसकी
बुधिमत्ता की कहानियां दूर दूर तक फैलनी शुरू हो गयी.
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